मीराबाई का जीवन संगीत, भक्ति और साधना की उच्च श्रेणी को प्रतिनिधित्व करता है। वे राजपूतानी सम्राट भोज राजा की धर्मपत्नी थीं, लेकिन उनका मार्ग भक्ति की ओर ले गया। …
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पुरुषोत्तम मास, जिसे मलमास के नाम से जाना जाता था, श्रीकृष्ण के वरदान से विशेष महत्व प्राप्त करता है। इस माह में तप, पूजा, दान, कथा श्रवण से अनंत पुण्य …
Purushottam Mas Katha: Adhyaya 1 | पुरुषोत्तम मास कथा: अध्याय 1
नैमिषारण्य में ऋषियों का यज्ञ हेतु संगम, सूतजी और शुकदेवजी का स्वागत, उनकी दिव्यता, भक्ति, ज्ञान और तीर्थयात्रा के महत्व पर आधारित आध्यात्मिक संवाद का वर्णन। कल्पवृक्ष के समान भक्तजनों …
Purushottam Mas Katha: Adhyaya 2 | पुरुषोत्तम मास कथा: अध्याय 2
सूतजी ने ऋषियों को नारायण द्वारा नारद को सुनाई गई पुरुषोत्तम मास की महिमा बताई। यह मास भगवान के प्रति भक्ति, व्रत, और दान से पापों का नाश और मोक्ष …
Purushottam Mas Katha: Adhyaya 3 | पुरुषोत्तम मास कथा: अध्याय 3
अधिमास, निंदित और असहाय होकर भगवान विष्णु की शरण में गया। उसने अपनी व्यथा सुनाई, और भगवान ने उसे धैर्य बंधाते हुए सम्मानित करने का आश्वासन दिया। ऋषिगण बोले, ‘हे …
Purushottam Maas Katha: Adhyaya 4 | पुरुषोत्तम मास कथा: अध्याय 4 |
अधिमास, शरणागत होकर भगवान विष्णु से अपने तिरस्कार और कष्ट की व्यथा कहता है। करुणा से द्रवित भगवान विष्णु अधिमास को स्वीकारते हैं और उसे आश्वासन देते हैं। श्रीनारायण बोले, …
Purushottam Mas Katha: Adhyaya 5 | पुरुषोत्तम मास कथा: अध्याय 5
अधिमास के दुःख से व्यथित, भगवान विष्णु अधिमास को लेकर श्रीकृष्ण के गोलोक पहुंचे। श्रीकृष्ण ने अधिमास को स्वीकारते हुए उसे “पुरुषोत्तम मास” का सम्मान दिया, उसका दुःख हर लिया। …
Purushottam Mas Katha: Adhyaya 6 | पुरुषोत्तम मास कथा: अध्याय 6
भगवान विष्णु अधिमास के दुःख को लेकर गोलोक में श्रीकृष्ण के पास गए। श्रीकृष्ण ने अधिमास के दुःख को दूर कर इसे सर्वोत्तम “पुरुषोत्तम मास” का दर्जा दिया। नारदजी बोले …
Purushottam Mas Katha: Adhyaya 7 | पुरुषोत्तम मास कथा: अध्याय 7
भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास को “पुरुषोत्तम मास” नाम देकर सर्वोच्च स्थान दिया। इस मास में जप, दान, स्नान और पूजा से भक्तों को असीम पुण्य व मोक्ष प्राप्त होता है। …
Purushottam Mas Katha: Adhyaya 8 | पुरुषोत्तम मास कथा: अध्याय 8
सूतजी बोले, ‘हे तपोधन! विष्णु और श्रीकृष्ण के संवाद को सुन सन्तुष्टमन नारद, नारायण से पुनः प्रश्न करने लगे। नारदजी बोले, ‘हे प्रभो! जब विष्णु बैकुण्ठ चले गये तब फिर …