अर्जुन उवाच: सन्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम् । त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ।। अर्जुन बोले- हे महाबाहो ! हे अन्तर्यामिन् ! हे वासुदेव ! मैं संन्यास और त्यागके तत्त्वको पृथक्- पृथक् …
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Chapter 17 : Shraddha Traya Vibhaga Yoga – अध्याय १७: श्रद्धात्रयविभागयोग
अर्जुन उवाच: ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः । तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः ।। अर्जुन बोले- हे कृष्ण ! जो मनुष्य शास्त्रविधिको त्यागकर श्रद्धासे युक्त हुए देवादिका पूजन करते …
Chapter 16 : Daivasura Sampad Vibhaga Yoga – अध्याय १६: दैवासुरसम्पद्विभागयोग
श्रीभगवानुवाच: अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः । दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ॥ श्रीभगवान् बोले- भयका सर्वथा अभाव, अन्तःकरणकी पूर्ण निर्मलता, तत्त्वज्ञानके लिये ध्यानयोगमें निरन्तर दृढ़ स्थिति और सात्त्विक दान, इन्द्रियोंका दमन, भगवान्, …
श्रीभगवानुवाच ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥ श्रीभगवान् बोले- आदिपुरुष परमेश्वररूप मूलवाले और ब्रह्मारूप मुख्य शाखावाले’ जिस संसाररूप पीपलके वृक्षको अविनाशी कहते हैं, तथा …
गायत्री माता को वेदों की जननी और ज्ञान, प्रकाश, और सद्गुणों की देवी माना जाता है। उनकी आराधना करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति होती …
श्रीभगवानुवाच: परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् । यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ॥ श्रीभगवान् बोले- ज्ञानोंमें भी अति उत्तम उस परम ज्ञानको मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर सब मुनिजन …
अंबाजी माता को शक्ति, साहस, और समृद्धि की देवी माना जाता है। उनकी पूजा और व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति प्राप्त …
Chapter 13 : Kshetra Kshetrajna Vibhaga Yoga – अध्याय १३: क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग
श्रीभगवानुवाच: इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते । एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः ॥ श्रीभगवान् बोले- हे अर्जुन ! यह शरीर ‘क्षेत्र’ इस नामसे कहा जाता है और इसको जो …
पूरा नाम: आदि शंकराचार्यजन्म: 788 ई. (अनुमानित)जन्म स्थान: कालड़ी, केरल, भारतमाता-पिता: माता – आर्यम्बा, पिता – शिवगुरुसंप्रदाय: अद्वैत वेदांतगुरु: गोविंद भगवत्पादमुख्य ग्रंथ: ब्रह्मसूत्र भाष्य, भगवद गीता भाष्य, उपनिषद भाष्यनिधन: 820 …
अर्जुन उवाच: एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते। ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ।। अर्जुन बोले- जो अनन्यप्रेमी भक्तजन पूर्वोक्त प्रकारसे निरन्तर आपके भजन ध्यानमें लगे रहकर आप सगुणरूप परमेश्वरको और …